आज इतनी आवाज़ों के बीच हमें ये आवाज़ें कितनी अपनी सी लगती हैं. ये उन दिनों की ध्वनियाँ हैं जब बुद्धू बक्सा उतना बुद्धू नहीं था. हमारे सामने इतिहास और संस्कृति जिस रोचक अंदाज़ में अनफोल्ड हो रही थी, ऐसा लगता था कि हमने इतिहास क्या पढा, घास काटी थी. हमारी उबाऊ शिक्षा-पद्धति पर ऐसा सीरियल हज़ार गुना भारी था. यहाँ मैं भारत एक खोज का ओपनिंग साँग पहले जारी कर चुका हूँ . अब पेश है क्लोज़िंग साँग भी- ओपनिंग वाले के साथ.
एपिसोड-11, चाणक्य और चन्द्रगुप्त पार्ट-1 का शुरुआती दृश्य
सत्यदेव दुबे और रवि झाँकल
सृष्टि से पहले सत नहीं था
वह था हिरण्यगर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान
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मीटर
आना जाना लगा रहेगा, एक आयेगा एक जायेगा
9 comments:
रोंये खड़े हो गये । आपके सौजन्य से फिर सुना । शुक्रिया !
स्मृति तरोताजा करने के लिए धन्यवाद.
सीधे आत्मा में उतरते स्वर... जो अंतरिक्ष के विस्तार में ले जाते हैं...
अभी पिछले दिनों दूरदर्शन पर फिर से दिखाया जा रहा था यह बेजोड़ धारावाहिक....
सच में अद्भुत है.....
ज़माना हुआ सुने……धन्यवाद
शुक्रिया।
मोबाईल के रिंगटोन में सेट किया हुआ है मैने इसे।
कोई लौटा दे मेरे, टी वी के बीते हुए दिन!
आजकल टी वी देखता ही नहीं हूँ।
कहाँ गायब हो गये ऐसे कार्यक्रम?
हमलोग, बुनियाद, The world this week, सुरभी, यह जो है जिन्दगी, Yes Minister, महाभारत, जैसे कार्यक्रम आज देखने को मिलते ही नहीं।
याद दिलाने के लिए शुक्रिया।
इरफ़ान,कमाल कर दिया आपने,उस समय का ऐसा कार्यक्रम जिसे पूरा परिवार आस्था भाव से देखता था,अब किसी कार्यक्रम में कम से कम ऐसी आस्था दिखती नही,शुक्रिया मित्र !!!!
आपके प्रयत्नों का कायल हू मैं,
आप यूं ही सजीव रहें. मुबारक हो.
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